Our Founder
आभार के दो शब्द संस्थापक की ओर से...
मान्यवर,
आज इस पुनीत अवसर पर आपकी यह विराट उपस्थिति दीप शिखा कन्या इण्टर कालेज, गोरखपुर के प्रति आपके सहज स्नेह, शुभकामनाओं और औदार्य का ही फल है। अपनी इस संस्था के प्रति आपके इस आत्मीय भाव का साक्षात्कार कर गद्-गद् और | अभिभूत हूँ।
आपके स्वागत के लिये शब्द कम पड़ रहे हैं। यह विद्यालय प्रभु की आराधना, आपकी शुभकामना और हमारी साधना का फल है इसमें मेरा कहीं कुछ भी तो नहीं है अतः विनम्रता पूर्वक कबीर के शब्दों में कहूं तो “तेरा तुझको अर्पण क्या लागे हैं
मेरा”।
इस विद्यालय की स्थापना का भाव मेरे मन में अपने परम पूज्य दिवंगत पिता स्व० कमलेश्वर प्रसाद त्रिपाठी के शिक्षानुराग के प्रतिफल स्वरूप उत्पन्न हुआ किन्तु क्षेत्र के पिछड़ेपन, साधनों के अभाव के कारण विलम्ब हो रहा था संकल्प को मूर्तिमान
करने में। लेकिन जब आप जैसे सहयोगियों का मुझे हर सम्भव सहयोग और | अनुराग उपलब्ध था तो राह की बाधाएं स्वयं पथ बनाने लगी और आज इस विद्यालय को इस रूप में आपको समर्पित करते गौरवान्वित दो शब्द विद्यालय के नामकरण के संदर्भ में
भी निवेदन करने का लोभ संवरण नही कर पा रहा हूं।
दीपशिखा नाम महाकवि कालिदास, बिहारी और महादेवी वर्मा को भी बड़ा प्रिय था| किन्तु तुलसी की दीपशिखा ने हमें सर्वाधिक प्रभावित किया
“सोहंस्मि इति वृत्ति अखण्डा । दीपशिखा सोइ परम प्रचण्डा ।।"
यह ब्रहूम मै हूं, यह जो अखण्ड वृत्ति हैं वहीं परम प्रचण्ड दीपशिखा (लौ) है। इस प्रकार जब आत्मानुभव के सुख का सुंदर के' प्रकाश फैलता है तब संसार के मूल भेद रूपी भ्रम का नाश होता है, | बलवती सांसारिक अविद्या का परिवार (मोह आदि)
का अपार | अन्धकार मिटता है और विज्ञान रूपिणी बुद्धि प्रकाश को पाकर हृदय रूपी घर में बैठ कर उस जड़-चेतन की गांठ खोलती है। विद्या और ज्ञान प्रसार के लिये यही "दीपशिखा” सर्वाधिक उपयुक्त लगी।
प्रारम्भ के व्यवधानों का उल्लेख करने में मुझे संकोच नहीं है कि | बालिकाओं की शिक्षा के प्रति क्षेत्र में जागरूकता के बावजूद उसकी अलग से कोई व्यवस्था नहीं थी और लड़कों के साथ ही उन्हें पढ़ना पड़ता था। आप से अप्रकट नहीं है कि
यह एक दुसह स्थिति थी कई कोणों से, और इसी के प्रतिकार के लिये सन १९९५ में होकर दीपशिखा कन्या हाई स्कूल प्रारम्भ किया गया । सन्देह तथा भ्रम के कारण अपेक्षित संख्या में बालिकायें उपलब्ध नहीं हो पाई। दृढ़ प्रतिज्ञ प्रथम वर्ष
केवल पाँच बालिकाओं को अभिभावकों ने संकोच पूर्वक यहाँ अध्ययन के लिये भेजा। और आपको बताते हुए हर्षातिरेक हो रहा है कि इन पाँचों मेघावी छात्राओं ने प्रथम श्रेणी प्राप्त कर | विद्यालय के पहले वर्ष ही इसका “दीपशिखा” नाम सार्थक
कर दिया। इस क्रम में सर्वप्रथम प्रवेश लेने वाली का विशेष उल्लेख इस लिये करना चाहूंगा कि सीमा ने हाई स्कूल, इण्टर, बी.ए. तथा एम.ए. की सभी परीक्षाओं में न केवल प्रथम |श्रेणी का अपना स्तर बनाये रखा, वरन् उत्तरोत्तर अपना अंकोन्नयन
करते हुए अपनी प्रतिभा की सब पर अमिट छाप छोड़ी है। इनके मंगलमय भविष्य, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिये हमारी हार्दिक शुभकामनायें । वर्ष १९९४ में प्रवेश लेकर वर्ष १९९५ में उत्तीर्ण होने वाली छात्राओं के पश्चात् आगे के वर्ष २००२
तक की हाई स्कूल की परीक्षा परिणामों की एक झलक अन्त में देखी जा सकेगी। विद्यालय को हाई स्कूल की सीधी और नवीन कन्या हाईस्कूल की मान्यता वर्ष २००० में प्राप्त हुई। इस प्रकार अभिभावकों के बढ़ते विश्वास और अपने आत्मबल के फलस्वरूप
वर्ष १९९७ में इण्टर की पढ़ाई भी प्रारम्भ कर दी गई जिसका पहला बैच वर्ष १९९८ में निकला तब से लेकर इण्टर के भी कुल पाँच बैच निकल चुके हैं।
इण्टर परीक्षा के परिणाम भी आपके सुलभ सन्दर्भ हेतु अन्त में दिये गये है। विद्यालय को इण्टरमीडिएट की मान्यता इसी वर्ष से प्रभावी प्राप्त हुई है। मान्यता प्रमाण पत्र में केवल ६ विषय अंकित हैं बाद में ४ अतिरिक्त विषयों की मान्यता
हेतु आवेदन पत्र अग्रिम कार्यवाही हेतु शासन को प्रेषित किया जा चुका है। आपकी सद्भावनायें यदि पूर्ववत् मिलती रहीं तो विश्वास करें- कि विज्ञान वर्ग की मान्यता अगले वर्ष तक प्राप्त करके आपकी सेवा का एक और अवसर प्राप्त कर हर्ष
का अनुभव करूंगा। विद्यालय के समस्त हितचिन्तकों तथा अभिभावकों के इस निश्छल सहयोग का आभार व्यक्त करते हुए अब अपने निष्ठावान |
अध्यापकों, अध्यापिकाओं, कर्मचारियों के प्रति भी आभार प्रदर्शन | का अवसर नहीं खोना चाहता क्योंकि यही वे शिल्पी हैं जो अनगढ़ पत्थरों को तराश कर मूर्तियां बनाते हैं। सभी कुछ इन्हीं की निष्ठा, लगन और समर्पित भाव से किए गये इनके
अथक प्रयास से ही सम्भव हुआ है। आज के समारोह में माननीय मुख्य अतिथि तथा अध्यक्ष | महोदय सहित हमारे अनेक हित चिन्तक तथा प्रबुद्ध अभिभावक, |
सुधीजन, राजनेता तथा पत्रकार बन्धु उपस्थित हैं जो हमारे मार्ग | दर्शक और प्रेरणा स्रोत हैं। उनका न केवल कृतज्ञ हूं, वरन् भविष्य में भी उनके इसी स्नेह, आशीर्वाद और आत्मीयता का आकांक्षी हूं। सभी कुछ कहने के उपरान्त अपनी अकिंचनता
की सीमा का अब भी मुझे पूर्ण परिज्ञान है और इसीलिये यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि यह मेरी कोई उपलब्धि नही है जो है सब आपके ही आशीष का सुफल है। हॉ यह आशा अवश्य करता हूँ कि यह वृक्ष जिसे आपने रोपा है, आपके स्नेह-जल के
सिंचन से निरन्तर | पल्लवित, पुष्पित और फलवान हो कर विद्या की सुखद छाँव उपलब्ध करायेगा तभी अपना श्रम और प्रयास सार्थक समझंगा।
दिनांक: ८ मार्च २००३
निवेदक
आई.पी. त्रिपाठी संस्थापक/प्रबन्धक दीपशिखा कन्या इण्टर कालेज